Monday, August 26, 2019

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन से बीजेपी को कितना फ़ायदा?

मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 A के ख़ात्मे और इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद अब विधानसभा सीटों के परिसीमन की तैयारी में जुटी है.

इसकी प्रक्रिया कुछ सप्ताह बाद शुरू होगी और इसकी घोषणा जल्द ही हो सकती है.

इस सिलसिले में गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में हुई अब तक की बैठकों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव राजीव गौबा, अतिरिक्त सचिव (कश्मीर) ज्ञानेश कुमार, रॉ और आईबी प्रमुखों, अर्धसैनिक बलों के महानिदेशकों समेत आला अफ़सर शामिल हुए हैं.

चुनाव आयोग ने बीबीसी को बताया कि उसकी तरफ़ से तैयारी पूरी है और उसे केवल केंद्र सरकार के आदेश का इंतज़ार है.

गृह मंत्रालय के अनुसार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को 31 अक्तूबर से लागू किया जाएगा.

जम्मू-कश्मीर में इन दिनों राष्ट्रपति शासन है. नए चुनाव से पहले परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होनी है.

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावी क्षेत्रों के पुनर्गठन की मांग वर्षों से की जा रही है.

ख़ास तौर से जम्मू में भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा पुरज़ोर वकालत की है जहाँ इसकी लोकप्रियता दूसरी पार्टियों से कहीं अधिक है.

इस मांग के पीछे वो शिकायत है, जिसमें अक्सर ये कहा जाता है कि राज्य की विधानसभा में जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कश्मीर घाटी की तुलना में कम है.

जम्मू की दूसरी शिकायत ये है कि कश्मीर घाटी की तुलना में जम्मू डिवीज़न में विकास का काम कम हुआ है.

दूसरी तरफ़ कश्मीर घाटी की पार्टियों को अगर अनुच्छेद 370 के ख़ारिज करने से पहला बड़ा झटका लगा है तो परिसीमन के नतीजे इन पार्टियों के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हो सकते हैं.

फ़िलहाल कश्मीर घाटी के लगभग सभी बड़े नेता नज़रबंद हैं लेकिन 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के हटाए जाने की घोषणा से एक दिन पहले श्रीनगर में हुई ऑल पार्टी बैठक में कश्मीरी नेताओं ने केंद्र सरकार से अपील की थी कि जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के साथ छेड़खानी न की जाए.

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